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बाहर की दुनिया में औरतें / शुभा
Kavita Kosh से
औरत बाहर की दुनिया में प्रवेश करती है
वह खोलती है
कथाओं में छिपी अंतर्कथाएँ
और न्याय को अपने पक्ष में कर लेती हैं
वह निर्णायक युद्द को
किनारे की ओर धकेलती है
और बीच के पड़ावों को
नष्ट कर देती है
दलितों के बीच
अंधकार से निकलती है औरत
रोशनी के चक्र में धुरी की तरह
वह दुश्मन को गिराती है
और सदियों की सहनशक्ति
प्रमाणित करती है