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बिखरी रेत पर / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
धरती कांपी
रेत हो गई
कब भागमभाग हो गई
बिखरी रेत पर
कुछ परछाइयां
बस! सन्नाटा पसर गया
वे यूं ही सारी उम्र
बिखरी रेत पर
आशियाना ढूंढ़ते
चक्करघिन्नी होकर
मजदूरी खोजते रहे
रेत रेत रह गई
रेत के बाद और रेत
पगडंडी भी बिखर गई
मजदूर और कामगार
रेत होने लगे
बाहर भीतर बस
सन्नाटा पसर गया