भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था / जमाल एहसानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
वो हो रहा है यहाँ जो न होने वाला था

और अब ये चाहता हूँ कोई ग़म बटाए मिरा
मैं अपनी मिट्टी कभी आप ढोने वाला था

तिरे न आने से दिल भी नहीं दुखा शायद
वगरना क्या मैं सर-ए-शाम सोने वाला था

मिला न था पे बिछड़ने का ग़म था मुझ को
जला नहीं था मगर राख होने वाला था

हज़ार तरह के थेर रंज पिछले मौसम में
पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था