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बिच्छू / नेहा नरुका
Kavita Kosh से
(हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि अज्ञेय की ‘साँप’ कविता से प्रेरणा लेते हुए)
तुम्हें शहर नहीं गाँव प्रिय थे
इसलिए तुम साँप नहीं,
बिच्छू बने
तुम छिपे रहे मेरे घर के कोनों में
मारते रहे निरन्तर डंक
बने रहे सालों जीवित
तुमसे मैंने सीखा :
प्रेम जिस वक़्त तुम्हारी गर्दन पकड़ने की कोशिश करे
उसे उसी वक़्त औंधे मुँह पटककर, अपने पैरों से कुचल दो
जैसे कुचला जाता है बिच्छू,
अगर फिर भी प्रेम जीवित बचा रहा
तो एक दिन वह तुम्हें डंक मार-मार कर अधमरा कर देगा ।