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बिछुरन-मिलन सरीर कौ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग माँड़-ताल कहरवा)

 बिछुरन-मिलन सरीर कौ नित प्रारधाधीन।
 मन कौं रखियै नित्य निज प्रियतम-स्मृतिमें लीन॥
 मन कौ मिलन सदा सुखद, सहज, नित्य निर्बाध।
 देश-काल के भेद बिनु पूरत मन की साध॥
 भीड़-छीड़ होय, नगर-बन, घर या होय बाजार।
 अंतर हिय उछरत रहत नित रस-पारावार॥
 बूड़ौ चाहे अतल-तल, नाचौ होय तरंग।
 एकमेक ह्वै रहौ सब, बाहर-भीतर अंग॥