बिजलियों के पंख लेकर मैं नहीं उड़ता
चल दिया जिस राह, उस से भी नहीं मुड़ता
सोचता हूँ जो कभी कुछ टूट जाता है
लाख जोड़ो भी, मगर वह फिर नहीं जुड़ता
बिजलियों के पंख लेकर मैं नहीं उड़ता
चल दिया जिस राह, उस से भी नहीं मुड़ता
सोचता हूँ जो कभी कुछ टूट जाता है
लाख जोड़ो भी, मगर वह फिर नहीं जुड़ता