भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिजलियों के पंख लेकर मैं नहीं उड़ता / शिवशंकर मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिजलियों के पंख लेकर मैं नहीं उड़ता
चल दिया जिस राह, उस से भी नहीं मुड़ता
सोचता हूँ जो कभी कुछ टूट जाता है
लाख जोड़ो भी, मगर वह फिर नहीं जुड़ता