बिजली का मीटर पढ़ने वाले से बातचीत / राजेश जोशी
बाहर का दरवाज़ा खोल कर दाखिल होता है
बिजली का मीटर पढ़ने वाला
टार्च की रोशनी डाल कर पढ़ता है मीटर
एक हाथ में उसके बिल बनाने की मशीन है
जिसमें दाखिल करता है वह एक संख्या
जो बताती है कि
कितनी यूनिट बिजली खर्च की मैंने
अपने घर की रोशनी के लिए
क्या तुम्हारी प्रौद्योगिकी में कोई ऐसी हिक़मत है
अपनी आवाज़ को थोड़ा -सा मज़ाकिया बनाते हुए
मैं पूछता हूँ
कि जिससे जाना जा सके कि इस अवधि में
कितना अँधेरा पैदा किया गया हमारे घरों में?
हम लोग एक ऐसे समय के नागरिक हैं
जिसमें हर दिन महँगी होती जाती है रोशनी
और बढ़ता जाता है अँधेरे का आयतन लगातार
चेहरा घुमा कर घूरता है वह मुझे
चिढ़ कर कहता है
मैं एक सरकारी मुलाजिम हूँ
और तुम राजनीतिक बक़वास कर रहे हो मुझसे!
अरे नहीं नहीं....समझाने की कोशिश करता हूँ मैं उसे
मैं तो एक साधारण आदमी हूँ अदना-सा मुलाजिम
और मैं अँधेरा शब्द का इस्तेमाल अँधेरे के लिए ही कर रहा हूँ
दूसरे किसी अर्थ में नहीं
हमारे समय की यह भी एक अजीब दिक्क़त है
एक सीधे-सादे वाक्य को भी लोग सीधे-सादे वाक्य की तरह नहीं लेते
हमेशा ढूँढने लगते हैं उसमें एक दूसरा अर्थ
मैं मीटर पढ़ने निकला हूँ महोदय लोगों से मज़ाक करने नहीं
वह भड़क कर कहता है
ऐसा कोई मीटर नहीं जो अँधेरे का हिसाब-क़िताब रखता हो
और इस बार तो बिजली दरें भी बढ़ा दीं हैं सरकार ने
आपने अख़बार में पढ़ ही लिया होगा
अगला बिल बढ़ी हुई दरों से ही आएगा
ओह ! तो इस तरह लिया जायेगा इम्तिहान हमारे सब्र का
इस तरह अभ्यस्त बनाया जायेगा धीरे-धीरे
अँधेरे का
हमारी आँखों को
पर ज़बान तक आने से पहले ही
अपने भीतर दबा लिया मैंने इस वाक्य को
बस एक बार मन ही मन दोहराया सिर्फ़!