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बिटिया मुर्मू के लिए-3 / निर्मला पुतुल

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वे दबे-पाँव आते हैं तुम्हारी संस्कृति में
वे तुम्हारे नृत्य की बड़ाई करते हैं
वे तुम्हारी आँखों की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हैं
वे कौन हैं....?

सौदागर हैं वे...समझो....
पहचानो उन्हें बिटिया मुर्मू...पहचानो !
पहाड़ों पर आग वे ही लगाते हैं
उन्हीं की दुकानों पर तुम्हारे बच्चों का
बचपन चीत्कारता है
उन्हीं की गाड़ियों पर
तुम्हारी लड़कियाँ सब्जबाग देखने
कलकत्ता और नेपाल के बाजारों में उतरती हैं

नगाड़े की आवाजें
कितनी असमर्थ बना दी गई हैं
जानो उन्हें....!