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बिन्दु / अनामिका अनु
Kavita Kosh से
उसकी बेतरतीब सी दुनिया में कहीं तो थी वह
एक बेजान बिन्दु की तरह
वह बेजान बिन्दु
अब साँस और शब्द चाहती थी
उसने खींच दी एक मौन लकीर
और चुप्पी ओढ़कर सो गया
गम्भीर निद्रा में
बिन्दु को लकीर बना देना
उसका विस्तार नहीं ,
उसे अस्तित्वविहीन करना है
उसे लकीर की फकीरी में मिला देना है ।