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बिन्नू हो गईं स्यानी मर रये ऐई फिकर के मारें / महेश कटारे सुगम
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बिन्नू हो गईं स्यानी मर रये ऐई फिकर के मारें
सूख कें सैंयां रोज़ कुकर रये ऐई फिकर के मारें
टूटौ छान उसारौ टूटौ टूटी खाट मड़ैया
आ गऔ है बसकारौ घुर रये ऐई फिकर के मारें
त्योरस तौ पर गऔ है सूका पर खौं झर लग गई ती
आसौं कैसी हुइयै चुर रये ऐई फिकर के मारें
व्याव काज दुःख बीमारी में बिक गऔ गानों गुरिया
चिन्ता की आगी में बर रये ऐई फिकर के मारें
तू नें जावै कबरी गैया जैसी धौरी तू गई
सुगम सोच कें दिना निकर रये ऐई फिकर के मारें