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बिन तेरे ज़िंदगी कज़ा सी है / अर्चना अर्चन

बिन तिरे जिंदगी कज़ा सी है
हाय कितनी बड़ी सज़ा सी है

जिस्म भी साथ अब नहीं देता
रूह भी कुछ खफा खफा सी है

बात तन्हाइयों से करते हैं
गूंजती देर तक सदा सी है

कल जहां हाथ उसका छूटा था
दूर तक दश्त है, खजां सी है

लुत्फ आता नहीं कहीं भी अब
बात कोई हो, बेमज़ा सी है

कुछ ज़माने की साजिशें भी हैं
साथ रब की भी कुछ रज़ा सी है

अजनबी की तरह मिलें तो भी
हर मुलाकात मोजज़ा सी है

कौन सहता रहे भला अर्चन
बेवफा हो गई फज़ा सी है