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बिन देखे नन्दलाला कल न परे / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बिन देखे नन्दलाला, कल न परे
मोर मुकुट मोरे ठाकुर जी खों सोहे।
सो फंुदरन बीच छिपी रही नन्दलाला,
छिपी रही नन्दलाला। कल न परे...
माथे खोरे मोरे ठाकुर जी खों सोहे
सो टिपकन बीच छिपी रही नन्दलाला,
छिपी रही नन्दलाला। कल न परे...
कंठन गोपें मोरे ठाकुर जी खों सोहे,
सो गोपन बीच छिपी रही नन्दलाला,
छिपी रही नन्दलाला। कल न परे...
हांथन कंगन मोरे ठाकुर जी खों सोहे,
सो घड़ियन बीच छिपी रही नन्दलाला,
छिपी रही नन्दलाला। कल न परे...
केसरिया बागो मोरे ठाकुर जी खों सोहे,
सो पनरस बीच छिपी रही नन्दलाला, छिपी रही...
पावन तो मोजा मोरे ठाकुर जी खों सोहें,
सो माहुर बीच छिपी रही नन्दलाला,
छिपी रही नन्दलाला। कल न परे...