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बिन ब्याही / शरद कोकास
Kavita Kosh से
सात बहनों का मायका है
पड़ोस का एक घर
अक्सर आती हैं बड़ी बहनें
गोद में बच्चे
और पेट पर लिये
पड़ोसियों की आँखें
खेलती है छोटी
मौसी कहने वाले बच्चों के साथ
आँख मिचौली गुल्ली-डंडा लंगड़ी और घरघूला
एक घर में बचपन
एक में अभाव
खींच लाती है माँ की डाँट
बढ़ती उम्र के घर में
घर के सामने से गुजरते हुए
घंटी बजाता है कुल्फीवाला
तवे पर ज़ोरों से चम्मच पटकता है चाटवाला
चीखता है खारी गरम
मुस्कराता है फल्लीवाला
फुसफुसाती है पत्नी एक रात
आजकल नहीं दिखाई देती वह
रुकती है घर के सामने अब एक कार
नहीं ठहरता कोई
कुल्फी चाट या फल्लीवाला।