बिन हर नाम हृदय अंधियारी।
सुरझत नाहिं समझ बिन भूलो मोह अधम भ्रम भारी।
जप तप जोग समाध साधु बहु कर्म धर्म फंदयारी।
उरको आय जगत उरझायो अगम निगम विस्तारी।
साच झूठ उर जग प्रबोध कर इन्द्रन स्वाद समारी।
चोखी देह मगन माया में दिन दस की उजियारी।
जैसे सर्प छछूंदर की गति गहिवर सकै न टारी।
जूड़ीराम सतसंग भजन बिन नहिं हो सकत निनारी।