भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिम्ब कहाँ उतरेंगे / तारादत्त निर्विरोध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उजली रेखाओं के
साँवरे चितेरे
बिम्ब कहां उतरेंगे तेरे
सम्मुख हैं दरपनी अँधेरे

छाया-सी चल रही
धूलिकण बुहारती
सड़कों की भीड़
पाँवों से छूट रहीं सतहें
जुड़ने को आ जुड़े
पक्षियों के नीड़

जागने की एक रात,
सोने को अनगिन सबेरे

सठियाई बुद्धि के
मिमियाते लोग
साथ लिए कटुता की आग
डसने को आतुर हैं
कुण्डलियाँ मारे
कुंठित अनुराग
सर्पों से ज़्यादा हैं
ज़हरी सपेरे ।