भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिरानबेक पूस / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पलटि पुनि पहुंचल पापी पूस
रौदी देखि डरेँ बीहरिमे डंड घिचैए मूस।
गामक गाम उजाड़ भेल अछि,
तै पर ढिठगर जाड़ भेल अछि,
नार पोआरक नाम कतहु नहि
दीनक राति पहाड़ भेल अछि।
गोनड़ि धरि नहि जुड़य, कतयसँ आनत सीरक, धूस॥
माल-जाल सब कंक भेल छै,
सभक प्राण अभिचंक भेल छै,
भगवानक नामो पर चारू
कात आइ आतंक भेल छै।
नरकहुमे यमदूत कहाँदनि माङि रहल छै घूस॥
बाघक बाध पड़ल अछि परती,
ठनठन बाजि रहल अछि धरती,
कर्जक भारेँ हकहक करइत
ई सरकारे की की करती?
ककरा पापेँ रहल बरख भरि बनल मेघ कंजूस॥
दू-दू सय मन जे उपजाबय,
तकरो घरमे बं-बं बाजय,
दूसय जे किनि खैनिहारकेँ
नयनकोर तकरो भरि आबय
हाहाकार मचल अछि चौदिस की कोठा की फूस॥
पोखरि-झाँखड़ि सब अछि चटकल,
कोसी-कमला गंडक सटकल,
सबतरि घोर अन्हार लगै अछि
लोकक प्राण कण्ठ छै अँटकल।
कोन प्रकारेँ साल कटत तेँ लोक भेल मनहूस॥
जे सरकारी दया बँटैंए
अस्त व्यस्त दिन राति खटैए
ऊपर ऊपर दैछ मोलम्मा
भीतर भीतर कोँढ़ कटै’ ए।
भरिदिन तकरे नेना-भुटका चूसय लेमन चूस॥
कर्ज सधाबय लै पुनि कर्जा,
लेबामे जकरा नहि हर्जा,
अपने जे अछि खाट पकड़ने
करत कोना अनकर परिचर्या।
पेट भरत नहि रैली कयने, सजने पैघ जुलूस॥
सबसँ सबकेँ सब अछि टपने,
भरय बखारी सब मिलि अपने,
वादे भेल समाज ततयकी
नाम समाजेवादक जपने?
बुधियरबा सब अपन अपन घर सजबय झाड़-फनूस॥
पलटि पुनि पहँुचल पापी पूस।