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बिलखित कुमुदनि, चकोर, चक्रवाक हरष भोर / तुलसीदास

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राग बिभास

बिलखित कुमुदनि, चकोर, चक्रवाक हरष भोर,
करत सोर तमचुर खग, गुञ्जत अलि न्यारे ||
रुचिर मधुर भोजन करि, भूषन सजि सकल अंग,
सङ्ग अनुज बालक सब बिबिध बिधि सँवारे |
करतल गहि ललित चाप भञ्जन रिपु-निकर-दाप,
कटितट पटपीत, तून सायक अनियारे ||
उपबन मृगया-बिहार-कारन गवने कृपाल,
जननी मुख निरखि पुन्यपुञ्ज निज बिचारे |
तुलसिदास सङ्ग लीजै, जानि दीन अभय कीजै
दीजै मति बिमल गावै चरित बर तिहारे ||