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बिलाड़ि / रामदेव झा

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पिजबय मोंछ मुरेड़ा बैसि
करय उछन्नर घरमे पैसि।
दिवस रहय वा राति अन्हार
देखय सुनहट फुजल केबाड़।
चुप्प चाप पैसय बनि चोर
भनसाघर मे कर हरहोर।
थारी बाटी दिअय खसाय
ढ़नमनाय बासन ओंघराय।
खाय जाय ओ रान्हल माँछ
चाटय भरल दही केर छाँछ।
रहय निरैठ न तीमन अन्न
कतबो राखी घर के बन्न