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बिल्लौर / मख़दूम मोहिउद्दीन

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मुनव्वर<ref>उज्ज्वल, दीप्त</ref> ख़मूशी के बिल्लौर छनके
किरण मरमरी फ़र्श पर छनसे टूटी
कली चिटकी, आवाज़ के फूल महके
रंगों की सुरों की कोई कहकशाँ
खिलखिलाती हुई गोद में आ पड़ी है
ख़मूशी के गहरे समुंदर की तह से
किसी जल-परी ने मुझे जैसे आवाज़ दी हो
अँधेरे के परदे हिले, साज़ चौंके
कई नूर की उँगलियाँ जगमगाईं
शफ़क़-दर-शफ़क़, रंग-दर-र्म्ग
आरिज़<ref>मुख, चेहरा</ref> का हैरतकदा सामने है
वो हँसता हुआ मयकदा सामने है
छनक<ref>इन्द्रधनुष</ref> सामने है
किसी को यह क़िस्सा सुनाऊँ तो कैसे ?
क़दम और आगे बढ़ाऊँ तो कैसे ?

शब्दार्थ
<references/>