बिसरे हुए दिन याद आते / मनोहर अभय
बिसरे हुए दिन याद आते
चौड़े चबूतरे पर
जेबरी बट रहे कक्का
जाति के विजाति के
चिलम पी रहे हुक्का
राजी खुशी पूछते
बतियाते।
सामने मंदिर बड़ा
सेंजने का पेड़
हरे-पीले पत्ते चबातीं
बकरियाँ औ ' भेड़
खेलते बच्चे
पतंगें उड़ाते।
लम्बी दुआरी पार
बरोसी रौस पर धरी
सुलगते अँगारों पर
हड़िया दूध की चढ़ी
बिलोएगी दही अम्मा
माखन निथारते।
घुप अँधेरे में
चलने लगीं चाकियाँ
पीसतीं बेझर पुरानी
द्योरानी जिठानी काकियाँ
खनकती चूड़ी
कँगन खनखनाते।
शूकरा डूबा नहीं
घर छोड़ हलवाहे चले
ढोर-डंगर हाँकते
नंगे पाँव चरवाहे चले
देवी देवता को याद कर
माथा नवाते।
रसोई में धूआँ
रोटी सेकतीं दुलहिनें
झाड़ू बुहारू में लगीं
छोटी-बड़ी बहिनें
थक गए हाथ
अँगना बुहारते।
बगल में बेटी
सिर पर पोटली
रोटी खिलाने खेत पर
सांवरी सज कर चली
छाछ छकते सजन
रोटियाँ रूखी चबाते।
समय व्यालू का हुआ
चँदिया खाएगी बछिया
थालियों में परोसी
रोटी साग भुजिया
जींवनें आ रहे दद्दू
खाँसते मठारते।