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बिस्मिल का गोल चेहरा और ख़ुदा की विभाजक अदाएँ / विपिन चौधरी

रामप्रसाद और
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ में
ज़्यादा नहीं तो
इतना अन्तर तो है ही
कि मन्दिरों में माथा टेकने
और रेल-डकैती के बीच विभाजन किया जा सके

सान्ध्यकालीन वन्दना के मन्त्र उच्चारण
की मंगल ध्वनियों के बीच से
खड़खड़ाती हुई रेलगाड़ी
  
आप कुछ समझे कि नहीं

साफ़ स्लेट पर
सीधे-सीधे ‘बिस्मिल’ लिखने का साहस ख़ुदा भी
नहीं कर सकता था
तब उसे
धरती के बन्दों को धोखा देने का तुच्छ काम किया

ऐसी आडी-तिरछी गलतियाँ प्रभु
जान-बूझ कर करता आया था
ताकि उसकी जवाबदेही पर कोई आँच ना आए

समय आज भी गवाही दे सकता है कि
‘बागी’ पान सिंह तोमर बनाने के लिए
ख़ुदा को
‘खिलाडी पान सिंह’ का सहारा लेना पड़ा था

 जबकि उसे सबकी तयशुदा तकदीर अच्छे से मालूम है
वह जानता है कि रामप्रसाद की
‘सरफ़रोशी की तमन्नाओं’
को ग्रहण लगने से बचाने के लिए
मौलानाओं और पण्डितों से टकराना होगा
फ़कीरों की टोली से भिडना पड़ेगा

इसी तरह रामप्रसाद के हाथों
नम्बर आठ की रेलगाडी को काकोरी में लूटना ज़रूरी हो जाता है
क्योंकि रामप्रसाद बिस्मिल
‘बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत है’
के जुमले में
विश्वास करने वाली टोली में शामिल है

रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
ख़ुदा की इस रियायत का इस्तेमाल
करते हुए अपनी तक़दीर को
फाँसी के फन्दे पर टिका कर
अट्टहास लगाता है
  
और ख़ुदा के संरक्षण में पले दूसरी तरह के लोग
बसन्ती चोले के तिलिस्म में अटके रह जाते हैं

वे ख़ुदा पर सन्देह नहीं कर सकते थे
सो इन दस्तावेज़ी घटनाओं को
चन्द सिरफिरो की नादान गुस्ताखियाँ समझ
कर वे अपनी-अपनी राह पकड़ने का
सस्ता और आसान काम करते आए हैं