बिहरनिया / सुशील मानव
एक ही रोज गाँव में तीन लोगों ने तीन खरीददारी की
रामप्रसाद मिसिर ने खरीदी हीरो-होंडा मोटरसाइकिल चालीस हजार में
रामजी यादव ने खरीदी मोर्रा भैंस कुल रुपए तीस हजार देकर
रामदीन पटेल ने खरीदी एक औरत चुकाकर पच्चीस हजार नगद
लोगों ने रामप्रसाद को मशविरा दिया कि सड़क पर सम्हाल कर चलाना मोटरसाइकिल
लोगों ने रामजी को समझाया कि ग़र भूसा-दाना चूनी-चोकर से नही टूटने पाई तो
तुम्हारे घर में दूध और पैसे की कमी न होने देगी भैंस
जबकि उन्हीं लोगों ने रामदीन को दी हिदायत
कि बहुत छुपाकर रखना अपने रुपए और जेवर
कि ज्यादा दिन टिकती नहीं है खरीदी हुई औरतें
यूँ तो वो गाँव में खरीद कर आई चौथी औरत थी
इत्तेफाक ऐसा कि सबकी सब बिहार की
इसीलिए पूर्व की औरतों की तरह उसका भी नाम बिहरनिया पड़ गया
रूप-रंग नाक-नक्श ऐसा कि उस सा कोई नहीं था पटेल बस्ती में
यूँ कि पूरे गाँव में भी नहीं
गाँव के सारे लड़के अब रामदीन के दुआरे मछेव लगाए रहते
खेत-खलिहान, ताल-तलई शौंच के सारे रास्ते रामदीन के दुआरे होकर जाने लगे
यूँ मर्दों के पेट का मरोड़ हो गई बिहरनिया कि
गाँव भर के मर्दों को हगहगी पकड़ ली
दिन में कई-कई बार लोटा-डब्बा लिए शौंच दौड़ते वे
और लौटानी रामदीन के बम्बा पर रगड़-रगड़कर खूब देर तक धोते हाथ पाँव
बिहरनिया के खरीद-मूल्य के बरअक्श ब्याहता होने का दर्प
गाँव भर की स्त्रियों को इनफीरियरिटी काम्पलेक्स से उबार लेता
यूँ तो जन्मजात काना था रामदीन, पर दूजी आँख से भी कम ही फरियाता
दिन-बीते तो बिल्कुल भी न लौकता कुछ
इसी बात का ताना मार-मारकर बिहरनिया का कलेजा जराते लोग कि
इतनी सुंदर देह भर-रात नंगी होकर भी अनदेखी रह जाती होगी
दो तूर की फसल बेंच रामदीन ने बनवाई सात लड़ी की करधन
कमर पे हाथ धराई के बदले
जिसे पहनकर महीनों मटकती फिरी बिहरनिया
और सात सात तोले की घूँघुर लगी पायल
जो किसी गुफ्तचर की मानिंद बज-बजकर
पल-पल बिहरनिया का दर-पता बताते
एक रोज देहरी पर दीया बारती बिहरनिया से रामदीन ने कही अपने दिल की बात
मेरी अँधेर ज़िदग़ी में भी बार दो एक दीपक
बिना किसी लागलपेट के बताया बिहरनिया ने कि
नहीं बन सकती वो कभी किसी के बच्चे की माँ
कि धोखे से निकलवा दी है दलाल ने उसकी बच्चेदानी
और फिर कई दिन रोते रहे दोनों एक दूजे का अँधेरापन
गाँव के अधिकांश मर्दों की नीयत का एसिड टेस्ट ले चुके रूप के बूते
कुछ ही दिनों में लिटमस पेपर हो गई बिहरनिया
चाहे-अनचाहे महिलामंडली में शामिल होती तो हिदायत देती
दीदी-बहिनी फला-फला मर्द से बचाकर रखना अपनी बच्चियों को
कि कमीने ऐसी ऐसी बातें कह रहे थे मुझसे कि कहते घिन आती है
यूँ तो तीन साल बीत गए पर अविश्वास के पहर नहीं बीते
इस दर्म्यान वो सिर्फ दो बार गई अपने घर भागलपुर बिहार
बिस्तर पर जाते ही किसी गठरी की मानिंद खोलता वो बिहरनिया की देह
मन में एक खटका सा था कि
रात-बेरात बिहरनिया के बालों की पिन या ब्रा की हुक चुभती
तो चौंकन्ने रामदीन के कान खड़े हो जाते
कहीं कोई चाकू वाकू तो नहीं बिहरनिया के पास
हालाँकि कितने कान, कितनी आँखें थी बिहरनिया पर
पर कभी किसी ने नहीं किया दावा कि
कभी किसी गैरमर्द से कोई लपर-झपर या नैन-मटक्का रहा हो बिहरनिया का
तीन बरस बाद भी नहीं जमा भरोसा रामदीन का
तो उसके पाँव भी नहीं जमे रामदीन की देहरी
एक रोज बिना किसी से कहे-सुने कुछ
चली गई चुपचाप
देह के सारे जेवर उतारकर
तब ले दो बरस बीते
कभी-कभार गहनों की पोटली खोलता है रादीन
और उस करधन में धूँढ़ता है बिहरनिया की कमर
रात रामदीन के सपने में आती है बिहरनिया
और कहती है मोटी हो गई है मेरी कमर
अब नहीं समाएगी मेरी कमर, तुम्हारी करधन में रामदीन।