बिहान अब होई / रामरक्षा मिश्र विमल
मीत का लिखीं पातीं में
ईहे सोचे में कतना दिन असहीं गुजर गइल
एहिजा नया समाचार बड़ले का बा
रोज त बस एके तरह के घटना
कहीं दस के हत्या कहीं पाँच के बलात्कार
दहेज के लोभी बहू के जरा दिहले सऽ
त कहीं पटरीं पर से रेल उतरलि
कहीं घर गॉंव फुँका गइल
कवनो अधिकारी सीबीआई के चपेट में
केनियो बाढ़ से गाँव के गाँव दहा गइल
त सुखार से धरती जरि गइली केनियो।
लोग बाग डहकऽता
रोज ईहे कुल पढ़त सुनत
संवेदना मर गइल बा हमनी के
अब त जइसे परभावे ना रहल एकर।
हँ इयाद आइल
हर चेहरा प एगो नया तेज देख रहल बानी कुछ दिन से
सभके मन में कुछ सुगबुगा रहल बा
फर्ज आ अधिकार के बात सुन रहल बानी
हर गली हर कूचा हर गॉंव हर शहर
दोसरो के बुद्धि पर जीएवाला लोग
इस्तेमाल करे लागल बाड़न आपन दिलोदिमाग
लागता अन्हरिया के दिन अब खतमे बा
बिहान अब होई होइबे करी
एही आस में त
जइसे हमनी सभ के हँसल गावल थथमल बा
देखीं गीत कहिया फूटेला गजल कब ले गवाले
ढोलक के डोरी कब खिंचातिया पखाउज कब मढ़ाता!