Last modified on 24 जून 2021, at 22:44

बिहान होई कहिया (कविता) / विनय राय ‘बबुरंग’

माई रे माई बिहान होई कहिया।
भेडियन से खाली सिवान होई कहिया॥
झन-झन झनकेला सगरों सिवनियां-
धड़-धड़ के रूप बिगारे किसनियां-
खुसहाल जग में किसान होई कहिया,

माई रे माई बिहान होई कहिया॥
हमरा के कागज के नइया थमाई-
अपने आकासे जहजिया उड़ाई
अन्तर के जन्तर गियान होई कहिया,
माई रे माई बिहान होई कहिया॥

अरबन क जेकर खाता चलत वा
खरबन में जनता से घाटा कहत बा
हमनी के लायक विधान होई कहिया,
माई रे माई बिहान होई कहिया॥

भेड़ियन क जलवा में फंसलि चिरइया
इहे आजादी हड़ डूबति बा नइया -
सोने के आपन जहान होई कहिया,
माई रे माई बिहान होई कहिया॥

जागऽ हो बहिनी जागऽ हो भइया
पार लगाई ना कागज के नइया
धरती पर लाल निसान होई कहिया,
माई रे माई बिहान होई कहिया