भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिहारी भइया: च्यार चितरांम (2) / निशान्त
Kavita Kosh से
दो-तीन बिहारी भईया
ले आया है परिवार ई
जमा राख्या है- आछा काम-धंधा
आदमी तो आदमी है
सौ जिग्यां आवै-जावै
बगत कट ज्यावै
पण लुगायां ?
नीं किणी सूं जाण-पिछाण
नीं बोलण-बतलावण
जावै तो कठै जावै ?
देस, नातै-रिस्तां री
घणी ओळ्यूं आवै
पण बठै री भूख री ओळ्यूं
सो कीं बिसरावै।