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बीखै री बात करै कुण / ओम पुरोहित कागद

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चारूं कूंटां
छीयां रा हिमायती
तावड़ियै री बात
करै कुण ?
रोटी माँय
मोरा कर
ओ‘ले छानै देखै
पण
चौड़-धाड़ै
सूरज री बात
करै कुण ?
तपते तावड़ियै नै
गाळ्यां काढै
सूरज रै अंतस मांय
लागी लाय री बात
करै कुण ?
दिन उग्यां
दिन छिप्यां
मन हरखावै
प्रभाती
मोरिया
तेजा गावै
पण
बापड़ै सूरज रै
घर बारणै
मंगती सी
फेरी देंवती
धरती री बीखै री बात
करै कुण ?
चांद चढ्या
गिगनार
मिनख हरखै
गोर्या करै
सिणगार
पण
झाला दे-दे
गोदी मांय रमते
पाणी नै
चांद री
खेसण री
खोटी नीत री बात
करै कुण ?
भतूिळयो बण
भचभेड़ी खांवती
सूरज री
किरणा रै सागै मिल
आग बरसंावती
बावळी सी बाळू नै
मिनख हंता कैवै
पण
छांट पाणी पर
फोग
बूई
खेजड़ा
रोहिड़ा
सीवण अर भुरठ जेड़ा
महाकर्ण जामती
धरती री जायी
इण रगतकणी रै
मन मांय
धोरां नै
हरियल गाभा पैरावण री
हबोळा खांवती
अखूट चावना री बात
करै कुण?