बीज-संवेदन- 10 / शेषनाथ प्रसाद श्रीवास्तव
मौन में बातें कैसे की जाती हैं
मुझे नहीं मालूम
लेकिन मैंने
अपने अंदर उठते आवेगों का
मौन में साक्षात किया है
उसके उद्दाम ज्वार
और उतरते भाटे का
मुझे एहसास है
ऐसे में
फूलों की तरलता से
मेरा हृदय तरल हो उठता है
मेरे रोमों में पुलक जाग गई है
मैं आह्लादित हुआ हूँ
इस तरलता ने
मेरे टूटते रिश्तों को जोड़ा है.
लेकिन फिर भी
तथ्य चाहे जो हो
मॅुदी या खुली ऑखों के
अपलक मौन ने
कितने ही तरल प्रयोग किए हों
इस दुनिया में
मौन को एक चुप्पी माना गया है
एक सुरक्षा माना गया है
लोक में मौन एक ताकत जरूर है
लेकिन यह
अत्यंत संवेदनशीलों को ही
संप्रेषित होती रही है
मुझे तो मौन से भींगे
तुम्हारे शब्दों की
कुछ चोटें चाहिए थीं
जिसकी पगध्वनि
मेरे मन के प्राचीरों को लांघ कर
मेरे समूचे तन को बेध डाले.