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बीज / रामकृष्‍ण पांडेय

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अपने को खोल रहा है बीज
अब तक धरती के गर्भ में पला
सूरज से मिला उसे स्नेहभरा ताप
अभी-अभी अंकुराया है हरापन
जैसे माँ की गोद से
नवजात शिशु फेंक रहा हो
दृष्टि इधर-उधर