बीज / सुरेश सेन निशांत
बीज हूँ मैं
तुम्हारे हाथों में
तुम्हारे खेतों में
पेड़-पौधों की फुनगियों से सजा
धरती की नसों में करवट बदलता
तुम्हारे सपनों में फलता
बीज हूँ मैं
मुझे तुम्हारे पास लाए हैं
तुम्हारे पुरखे
कभी-कभी मैं
ख़ुद ही हवा-पानी के संग
डोलता हुआ आ गया
कभी पँछियों की बीट में
कभी मवेशियों की पूँछ से चिपका
कभी कामगारों की पीठ
मुझे ले आई तुम्हारी देहरी पे
बूढ़ी दादी ने मुझे संभाले रखा
मिट्टी और बाँस की पेड़ियों में
मुझ तक नहीं पहुँचने दिया घुणों को
तुम्हारे संग बहती
हवा-पानी नदी में रचा बसा
तुम्हारा सबसे बड़ा सखा
बीज हूँ मैं
चाहता हूँ मैं रहूँ
तुम्हारे विचारों में
तुम्हारी ख़ुशियों में
मैं भी लडूँ
तुम्हारी विपदा में
तुम्हारे हाथों की ताक़त बनकर
बीज हूँ मैं
मैं प्यार हूँ
हवा हूँ
पानी हूँ
पुरखों की एक मात्र निशानी हूँ
मैं हूँ तो तुमसे दूर है
महाजन की टेढ़ी नज़र
मैं हूँ तो
बची हुई है
तुम्हारे ज़िन्दा रहने की ख़बर
मैं हूँ तो
सजते रहेंगे गाँव हाट में
छोटी-छोटी ख़ुशियों के मेले
मैं हूँ तो
ज़रा-सा भीगने पर
पुलक से भर जाती है
परती धरती
मैं हूँ तो
सीधी रहेगी तुम्हारी पीठ
मैं हूँ तो
हरी रहेगी तुम्हारी दीठ
बीज हूँ मैं
मुझे मत बिसराना
किसी लालच में पड़कर
गिरवी मत रखना
मैं तुम्हारा ईमान हूँ