भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीज / हनुमान प्रसाद बिरकाळी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हांडी सूं निसर
गयो धरती री कूख
पाळया सुपना
फळीजण रा अलेखूं
हळवां-हळवां पांगरयो
काढया पानका
फूल काढ हांस्यो
खिड़ खिड़
खेत में
धोरी रै हेत में
लू रै नीं जंची
बाळ-सुका
रळा दियो रेत में।