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बीते हुए दिन हमारे / जोस इमिलिओ पाचेको / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
मैं अँकित करता हूँ
यहाँ-वहाँ
उड़ती रेत पर
न लौटने का कोई शब्द।
एक दूसरा शब्द
उत्कीर्ण किया था
जिसे पत्थर पर मैंने
उस पर जम गई है काई।
समय के साथ
कितने ही अवयवों ने
डाल दिया है आवरण उस पर।
और अब मुझे मालूम ही नहीं
कि उसका
आशय क्या होगा
जब मैं पढ़ूँगा इसे दोबारा।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र