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बीत चुका वक्त / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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कई बार
मैंने महसूस किया
कि
आज पहले से संबंध
नहीं रहे
जैसे चाश्नी में लिपटी जलेबियां
आपको अपनी
खुश्बू से आकर्षित करती थीं
और आप
खिंचे चले आते थे
पर
आज पहले-सी बात नहीं रहती
वे जलेबियां
नहीं रहीं
वो आंच नहीं रही
वो सांचे नहीं रहे
वो शिद्दत नहीं रही
हां जो रही है
वो है
मिलावटी जिंदगी के
मिलावटी तेल में
रची-बसी कुतुब मीनार-सी
जलेबियां
जिसमें मिठास तो है
पर वो बात नहीं
जो
खालिस शुद्धता की थी
अब जो है
सो है...
और
कोई चारा भी नहीं...
कि दरीबे से ले आओ
आप अपने मुहल्ले में
मुहल्ले नहीं रहे
मुहल्लेवालियां नहीं रहीं
कुल्हड़ नहीं रहे
थर्मोकल-सी जिंदगी में
हम आज कितने
बनावटी हो चले हैं
जो घर पहुंचने से पहले
सोचते हैं
कि
आज कौन-सा बहाना बनाना है