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बीमारी के दौरान / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
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तुम्हारी याद ने
इन दिनों
बिल्ली के करतब सीख लिए हैं
वो चली आती है
दबे पाँव हर रोज़
समय, काल औ मुण्डेरों को छकाती हुई
एकसाथ।
कितने-कितने दिन बीत गए
तुम्हें छुए,
तुमसे मिले हुए
मेरे रोएँ भी जानते हैं
तुम्हारा मुलायम स्पर्श
तुम्हारी गंध को मैं
नींद में भी पहचान सकता हूँ
आजकल मैं
धीरे-धीरे खाँसना सीख गया हूँ
वक़्त पे दवाएँ भी ले लेता हूँ
बेवजह बाहर भी नहीं निकलता
देखो तुम्हारे अनुरूप कितना ढल गया हूँ
कोई दिन तुम आ जाओ मुझसे मिलने
जीवन और मृत्यु के
संधिकाल में
आजकल मैं
नींद में भी
एक दरवाज़ा खोल के सोता हूँ !
(रचनाकाल: 2016)