बीसवीं-सदी / नाज़िम हिक़मत
"आओ अब सो जाएँ
और, प्रिय, आज से सौ वर्ष बाद ही हम जगें..."
"बिल्कुल नहींं
मैं पीठ दिखाकर भागने वालों में नहीं,
इसके अतिरिक्त मेरी सदी से मुझे डर लगता नहीं,
मेरी विपदा की मारि हुई सदी,
शर्म से जिसके गाल लाल हैं,
मेरी साहस से भरी हुई सदी
महत् है,
पराक्रमी है।
मुझे कभी इसका दुख नहीं हुआ वक़्त से पहले ही पैदा हुआ है —
मैं बीसवीं सदी में जन्मा हूँ,
और उस पर मुझे पूरा गर्व है।
जहाँ मैं हूँ, अपनी जनता के बीच होने में मुझे पूरा तोष है,
और एक नई दुनिया के लिए लड़ने में..."
"सौ वर्षों बाद, मेरे प्रिय..."
"नहीं, उससे पहले और सबकुछ के बावजूद,
मेरी सदी मरती और फिर जन्म लेती हुई,
मेरी सदी जिसके अन्तिम दिन ख़ूबसूरत होंगे,
मेरी सदी सूरज की रोशनी-सी चमकेगी,
प्रिये, जैसे तुम्हारी आँखें हों।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह