भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीस बिधि आऊँ दिन बारीये न पाऊँ और / आलम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीस बिधि आऊँ दिन बारीये न पाऊँ और,
               याही काज वाही घर बांसनि की बारी है ।
नेंकु फिरि ऐहैं कैहैं दै री दै जसोदा मोहि,
               मो पै हठि माँगैं बंसी और कहूँ डारी है ।
'सेख' कहै तुम सिखवो न कछु राम याहि,
               भारी गरिहाइनु की सीखें लेतु गारी है ।
सँग लाइ भैया नेंकु न्यारौ न कन्हैया कीजै,
               बलन बलैया लैकें मैया बलिहारी है ।