बीस साल बाद / समीर वरण नंदी / जीवनानंद दास
बीस साल बाद, अगर उससे हो जाए मुलाक़ात।
शाम की पीली नदी में कौवे जब घर फिरते हों तब,
जब घास-पात नरम और हल्की हो जाए।
या जब कोई न हो धान खेत में
कहीं भी आपाधापी मची न हो
हंसों और चिड़ियों के घोसलों से जब गिर रहे हों तिनके
मनियार के घर रात हो, शीत हो और जब शिशिर की नमी झर रही हो।
जीवन कर गया है बीस साल पार-
ऐसे में तुम्हें पा जाऊँ मीठी राह एक बार।
हो सकता है आधी रात को जब चाँद उगा हो
शिरीष या जामुन, झाऊ या आम के
पत्तों के गुच्छों के पीछे
काले कोमल डाल-पात झाँकती तुम आ जाओ
क्या बीससाल पहले की तुम्हें कुछ नहीं याद।
जीवन कर गया है बीस साल पार
और ऐसे में अगर मुलाकात हो जाए एक बार।
तब शायद झपटकर उल्लू मैदान पर उतर पड़ें-
बबुआ की गली के अन्धकार में
अश्वत्थ के जंगले के फाँक में
कहाँ छुपाऊँ आपको?
पलक की तरह झुककर छुपूँ कहाँ चील का डैना थाम कर-
सुनहली-सुनहली चील-शिशिर का शिकार कर
जिसे ले गयी उसे
बीस साल बाद उसी कोहरे में
अगर मुलाकात हो जाए।