Last modified on 2 सितम्बर 2018, at 20:15

बीस / प्रबोधिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

इन दो आँखों पर
कहता हूँ चंचल चितबन पर
जी हाँ! जी हाँ! तिरछी नजरों पर
कोई मत विश्वास करो
गेहुआँ रंग की औरत गेहूँअन से बढ़ कर है

कौन कह रहा प्यार हमें है दीपक से
नीचे देखो! हैं लाश बिछी कितने उसके परवानों की
कौन कह रहा, दीपशिखा-सी नारी मेरे अपनी है
पीछे देखो है लाश गिरी कितने उसके दीवानों की

कौन यहाँ भरने आया मधु की गागरी
हर पनघट पर नीर मिले है माहुर के
कौन कह रहा बोल भले हैं कोयल के
मुझे लग रहे बोल भले हैं दादुर के

कौन कह रहा लूट पराए करते हैं
मुझे लूट कर चले अपनी ही सब
अब किस पर विश्वास करूँ विश्वास नहीं
अरे! झूठ कर चले गए अपने ही जब
दिल लूट लिया मिलकर मेरे दिल बालों ने

चंचल जीभों पर
कहता हूँ चिकनी बातों पर
जी हाँ! जी हाँ! इस खाँड़ छूरी पर
कोई मत विश्वास करो
अरे नीम का काढ़ा शर्बत से बढ़ कर है