भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुझण न द्ये मसाल भुला / जयवर्धन काण्डपाल
Kavita Kosh से
बुझण न द्ये मसाल भुला
अंध्यारू च बिकराल भुला
मन की डौर भैर ते
सांस्वे त च काल भुला
मन मा कतै औण न द्ये
हार कु तु ख्याल भुला
बण्द नी चुटकी मा
महल क्वे विसाल भुला
टूटी भले जालू पर
झुकदू नी हिमाल भुला