बुझा है इक चिरागे दिल तो क्या है
तुम्हारा नाम रौशन हो गया है
तुम्हीं से जब नहीं कोई तआल्लुक़
मेरा जीना न जीना एक-सा है
तेरे जाने के बाद ए दोस्त हम पर,
जो गुजरी है वो दिल ही जानता है
सरासर कुफ़्र है उस बुत को छूना,
वो इस दर्जा मुक़द्दस हो गया है
कहीं मुँह चूम ले उसका न कोई,
वो शायद इसलिए कम बोलता है
हमी ने दर्द को बख्शी है अज़मत
हमी को दर्द ने रुसवा किया है
हयात इक दार है तलअत की जिस पर,
अज़ल से आदमी लटका हुआ है