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बुड्ढा दरिया-२ /गुलज़ार
Kavita Kosh से
मुँह ही मुँह, कुछ बुड्बुड् करता, बहता है
ये बुड्ढा दरिया
दिन दोपहरे, मैंने इसको खर्राटे लेते देखा है
ऐसा चित बहता है दोनों पाँव पसारे
पत्थर फेंकें , टांग से खेंचें, बगले आकर चोंच मारें
टस से मस होता ही नहीं है
चौंक उठता है जब बारिश की बूँदें
आ कर चुभती हैं
धीरे धीरे हांफने लाग जाता है उसके पेट का पानी.
तिल मिल करता, रेत पे दोनों बाहें मारने लगता है
बारिश पतली पतली बूंदों से जब उसके पेट में
गुदगुद करती है!
मुँह ही मुँह कुछ बुड्बुड् करता रहता है
ये बुड्ढा दरिया!!