बुढ़ड़ि / जगमोहन सिंह जयाडा 'जिज्ञासू'
एक गौं की कुछ बुढ़ड़ि,
तिबारी मा कठ्ठा ह्वेन,
यथैं सुण रे ब्यटा घन्ना,
सब्बि वेकु भटेन.....
घन्ना ब्वोन्नु हे बुढ़ड़्यौं,
आज यनि क्या बात छ,
साप साप तुम झट्ट बतावा,
बात क्या म्येरा हात छ?
बुढ़ड़ि ब्वोन्नि ब्यटा घन्ना,
ब्वारि नौंनौं दगड़ि गैन,
कुजाणि क्या बात यनि ह्वे,
बौड़िक फिर नि ऐन......
घन्ना ब्वन्नु चुपरा बुढ़ड़्यौं,
अब मैं ध्यान लगौन्दु,
कना हाल मा नौंना ब्वारि,
तुम्तैं अब्बि बतौन्दु.....
नौंना तुमारा ड्यूट्यौं फर छन,
ब्वारि मौज मनौणि,
जे खाण कू ज्यु कन्नु छ,
फोन करिक बतौणि......
कछड़ि मा बैठि ब्वारि तुमारी,
छ्वीं छन लगौणि,
अब नि द्येखण सासू की मुखड़ि,
मौत भी ऊंकू नि औणि,
बुढ़ड़ि ब्वोन्नि फूक रे घन्ना अब बतौ तू,
नाति नतणौं का हाल,
टक्क लगिं छ तौं फर भारी,
कब आला गढ़वाळ......
नाति नतणा राजि खुशी छन,
कन्ना छन सवाल,
गरम्यौं की छुटटि मा गौं जौला,
बल देवभूमि गढ़वाळ........