Last modified on 29 मई 2020, at 05:44

बुढ़िया का विदागीत / बैर्तोल्त ब्रेष्त / वीणा भाटिया

बीते सोमवार को ग्यारह बजे
सो कर उठी तो सोचा तक नहीं था
वह ऐसा भी करेगी
कि बुखार को स्वर्ग का संकेत समझे
हालाँकि
महीनों से वह हाड़ों का ढाँचा ही तो थी ।
दो दिनों तक उबकाई आती रही उसे
कै करती उठी वह तो
बर्फ़ - सी सफ़ेद थी

हफ़्तों पहले पादरी ने बुलाया उसे
किन्तु उसे लगता है
कॉफ़ी सुबकने का बहाना भर ही था यह...।

हालाँकि
बच निकली थी दुबारा
वह मृत्यु के स्नेहिल स्पर्श से
और अनुष्ठान बेमानी हो चुके थे
उसकी ख़ातिर ।
वह अपने सागौन के सन्दूक को
बहुत चाहती थी जिसमें रहती थी उसकी पोशाकें
शायद तैयार नहीं कर पाई वह ख़ुद को
उससे जुदा होने की ख़ातिर ।

यूँ भी पुराने फर्नीचर होते ही हैं घुनग्रस्त
और जीवन का कुछ हिस्सा होता ही है ऐसा
देखा जाए तो
वह समझती थी इस अभाव को
दुआ करती थी – रक्षा करना प्रभु परमेश्वर
जो पिछले हफ़्ते मर्तबानों में अँची का मुरब्बा डाला उसने ।
इसके अलावा दाँतों की जोड़ी को
धो - सुखाकर काम लायक बनाया कि
      अगर दाँत अच्छे हैं तो
अच्छी तरह खाया जा सकता है
बाहर घूमने जाते समय
पहना जा सकता है और
रात को पुराने कॉफ़ी के प्याले में
रखा जा सकता है इन्हें ।

आख़िर याद आ ही गया
जब उसके बच्चों को
कि अभी वह जीवित है
उनकी ओर से मिली है ख़बर
तो प्रभु रक्षा करे उनकी
हाँ, ईश्वर की अनुकम्पा से
बनी रहेगा फिर
उसकी काली पोशाक में भी
ज़्यादा ख़राबी नहीं ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : वीणा भाटिया