बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए / शेख़ अली बख़्श 'बीमार'
बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए
जो संग-ए-दिल हो तो क्या चाहिए जफ़ा के लिए
सवाल यार से कैसा कमाल-ए-उल्फ़त का
कि इब्तिदा भी तो शर्त इंतिहा के लिए
ख़ुदा से तुझ को सनम माँगते तो मिल जाता
मगर अदब ने इजाज़त न दी दुआ के लिए
अज़ाब-ए-आतिश-ए-फ़ुर्कत से काँपता था दिल
हज़ार शुक्र जहन्नम मिला सज़ा के लिए
न दिल लगा के हुआ मुझ से इश्क़ में परहेज़
बिगड़ गया जो किसी ने कहा दवा के लिए
मिला उन्हें भी तलव्वुन मुझे भी यक-रंगी
ख़ुसूसियत न रही सर सर ओ सबा के लिए
ख़ुदा ने काम दिए हैं जुदा जुदा सब को
सनम जफ़ा के लिए हैं तो हम वफ़ा के लिए
जहाँ-नवर्द रहे हम तलाश-ए-मतलब में
चले न एक क़दम ग़ैर-ए-मुद्दआ के लिए
मुशाइरा में पढ़ो शौक़ से ग़ज़ल ‘बीमार’
कि मुस्तइद है सुख़न-संज मरहबा के लिए