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बुद्धायन / अर्जुन कुमार सिंह 'अशांत'

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बन्दौ शाक्य कुमार, जाहि जन्म संवाद सुनि।
उमड़ल हर्ष अपार, शुद्धोदन सम्राट उर ॥ 1 ॥

कीन्ह दान परमार्थ, अन्न, वस्त्र, धन, सोमरस।
नामकरण सिद्धार्थ, गौतम घर-परिवार महँ ॥ 2 ॥

देखि सकल संसार, भरल कष्ट घनघोर दुख।
जिन पत्नी परिवार, रंग महल सत्ता सुखद ॥ 3 ॥

छाड़ि सकल सुख प्यार, राहुल प्रिय सुत प्राण सम।
भटकत विपिन पहाड़ विविध धर्म दर्शन जगत ॥ 4 ॥

पढ़लन सूक्ष्म विचार, वेद शास्त्र सद्ग्रन्थ सब।
कर्मकाण्ड उपचार, तंत्र-मंत्र, विधि योग जप ॥ 5 ॥

कइलन तप दिन-रात, भइल वदन कंकाल सम।
तबहूँ रहल अज्ञात, जन्म-मरण कारण जगत ॥ 6 ॥

किन्तु कर्म-विश्वास, भरल हृदय संकल्प शुभ।
अवसि मिटी मन प्यास, मिलिहें ज्ञान प्रकाश उर ॥ 7 ॥

त्यागि कठिन तप कर्म, भयउ लीन चिंतन जगत।
ढूँढहिं अस नव धर्म, करहिं जोइ दुख मुक्त जग ॥ 8 ॥

एक दिवस शुभ प्रात, गौतम खिन्न अतृप्त चित।
खिलल कमल दल पात, ज्ञान किरण आलोक लखि ॥ 9 ॥

भइल तत्व गुण ज्ञात, जन्म-मरण कारण जगत।
रहत न कुछ अज्ञात, झलगल बंधन मुक्ति-पथ ॥ 10 ॥

हे मनु पुत्र महान, एक अविद्या सकल दुख।
कारण मूल प्रधान, कीन्ह सुलभ अस ज्ञान जग ॥ 11 ॥

द्वादश विन्दु निदान, कारण कार्य विधान सम।
काल चक्र गतिमान, होत ध्वंस-निर्माण जग ॥ 12 ॥

व्यर्थ सत्य अनुमान, क्षण-क्षण बदलत रूप जग।
अस जीवन विज्ञान, सब नस्वर, तन आत्मा ॥ 13 ॥

कथ्य अर्थ पद छनद, काव्य कल्पना भाव रस।
महामूर्ख मतिमंद, शब्द-शिल्प गुण नाहिं मम ॥ 14 ॥

भरल हृदय अज्ञान, रचना करिहौं कवन विधि।
महाबुद्धविज्ञान, सूर्य किरण आलोक सम ॥ 15 ॥