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बुद्धि, मन और देह / अंजना टंडन
Kavita Kosh से
मन लिप्त हुआ
देह पिछे भागी
बुद्धि जड़ ही रही,
बुद्धि ने बोला
मन को टोका
देह अधरझूल रही,
देह लौटने लगी
बुद्धि को चुप करा
मन फिर पलटा,
बुद्धि ने तर्क लगाया
मन ने छल दिखाया
देह कश्मकश में रही,
समय निकलता रहा
खेल चलता रहा
देह भटकती रही,
मन अपनी करता
बुद्धि उपालंभ भरती
देह तरसती रहती,
मन ने मोह छोड़ा
बुद्धि ने नाता तोड़ा
देह दर्द सहती रही,
मन खाली हुआ
बुद्धि बंजर हुई
देह रेत हुई,
आखिर तक
जाते जाते भी देह जलती रही,
बोध हँसता रहा...।