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बुरे दिनों का आना-जाना लगा रहेगा / ज्ञान प्रकाश विवेक
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बुरे दिनों का आना-जाना लगा रहेगा
सुख-दुख का ये ताना-बाना लगा रहेगा
मैं कहता हूँ मेरा कुछ अपराध नहीं है
मुंसिफ़ कहता है जुर्माना लगा रहेगा
लाख नए कपड़े पहनूँ लेकिन ये सच है,
मेरे पीछे दर्द पुराना लगा रहेगा
मेरे हाथ परीशां होकर पूछ रहे हैं-
कब तक लोहे का दस्ताना लगा रहेगा
महानगर ने इतना तन्हा कर डाला है
सबके पीछे इक वीराना लगा रहेगा
युद्ध हुआ तो खाने वाले नहीं बचेंगे-
होटल की मेज़ों पे खाना लगा रहेगा