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बुरे नहीं थे दिन जो निकल गए / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
बुरे नहीं थे दिन जो निकल गए;
नए जो आए हैं वे तो
इतने अच्छे हैं कि आपने पत्र भेजकर गाए हैं !
यों तो मैं दिनों के मामले में विशेषज्ञ हूँ
मगर इस क्षण मन कहीं दूर किसी झंझट में पड़ा था
इसलिए कृतज्ञ हूँ कि आपने
बदले हुए मौसम की याद दिला दी
लदे हुए फूलों की जैसे कोई डाली हिला दी ।
और अब किसी झंझट में
नहीं पड़ा हूँ मैं
नए राशि-राशि मौसम के फूलों से
घिरा खड़ा हूँ मैं ।
7 जनवरी 1974
यह कविता कवि की हस्तलिखिए मूल पाण्डुलिपि से लेकर यहाँ टाईप की गई है।