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बुलबुल तरंग / नरेन्द्र जैन

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इस घर में
मछलियाँ तैरती हैं

समुद्र है यह घर

लहराते हैं ठण्डे पोखर इसके
छज्जों में
बौछारें बरसती हैं
बजता है किसी किनारे एक
बुलबुल तरंग

घर से निकलती है कोई मछली
चीरती पानी की क्रूर हँसी
खिलखिलाती है

इस घर में
मछली तैरती है

धूप गिरती है
इतनी तल्लीनता से
बहा ले जाएगी
एक चमकीले संसार में

एक तेज़-तर्रार लड़की बताती है
घर में मैं रहती हूँ
मेरे आस-पास मछलियाँ

देखती है मछली लड़की को
लड़की मछली से बात करती है