भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुलबुल / अलेक्सान्दर पूश्किन / हरिवंश राय बच्चन
Kavita Kosh से
ओ गुलाब की कली कुमारी,
मुस्कानों में क्या बन्धन ?
लतिकाओं में अटका रखतीं
यद्यपि तुम बुलबुल का मन ।
बन्दी बन, वह शरण तुम्हारी;
कर लो तुम इस पर अभिमान,
अन्धकार में दूर-दूर, पर,
गूँजा करता उसका गान !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : हरिवंश राय बच्चन