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बुलाती हूँ / रंजना जायसवाल

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जब भी
अपने मातहत को
बुलाती हूँ प्रेम से
पूछती हूँ कुशल –क्षेम
कहती हूँ नरमी से
वक्त-वेवक्त
मददा ले लेने को
उसकी आँखों में
आतंक भर उठता है